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ये मैं हूं:हादसे में बेटा खोया तो चली गई आवाज, अब सपने पूरा करने के लिए बच्चियों को पढ़ा रही – Aakash Maindwal Foundation

Source: Dainik Bhaskar

आकाश मेरा इकलौता बेटा था, लेकिन आज मेरी गोद सूनी है। वो 25 बरस का होकर दुनिया छोड़ गया।

उस मनहुस घड़ी को मैं आज भी याद कर सिहर जाती हूं जब मेरे आंचल का सुख किसी दर्दनाक हादसे ने छीन लिया। आकाश मेरा इकलौता बेटा था, लेकिन आज मेरी गोद सूनी है। वो 25 बरस का होकर दुनिया छोड़ गया। जवान औलाद को खोने का दर्द आज भी मेरी झोली में सिसकता है।’ ये शब्द हैं एक मां और शिक्षिका अनुपमा के।

लखनऊ में हुआ बेटे के साथ दर्दनाक हादसा

अनुपमा बताती है कि 7 जनवरी 2009, लखनऊ में एक दर्दनाक हादसा हुआ जिसमें मेरे बेटे की जान चली गई। इस हादसे के बाद मेरे मुंह से ऐसी चीख निकली कि लंबे समय तक खामोशी छाई रही। मेरे बेटे के लिए मैंने दुल्हन भी ढूंढ़ ली थी। नवंबर 2008 में सगाई कर उसके सिर पर सेहरा सजाना चाहती थी, शादी की तैयारियां भी कर ली थीं, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था।

आकाश बहुत याद आता है।
आकाश बहुत याद आता है।

आकाश बहुत याद आता है

मैं आज भी जब उसके नन्हें कोमल हाथ, उसका बचपन याद करती हूं तो आंख छलक उठती है, पति की नौकरी ऐसी थी कि एक जगह रहती नहीं, आज यहां ट्रांसफर तो कल कहीं और… बच्चे की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर ज्यादा थी और ममता भी उतनी ही।

मेरा बेटा पढ़ने-लिखने में बहुत होशियार और होनहार था। हमेशा अच्छे नंबर आते। उसी का हासिल था कि उसे अच्छी जगह इलेक्ट्रिक इंजीनियर की एक अच्छी नौकरी मिली। आकाश बहुत कोमल मन का था। हमेशा जरूरतमंदों की मदद के लिए खड़ा रहता था।

बहुत मददगार था मेरा बेटा

आकाश लोगों की इस तरह मदद करता जिसके बारे में किसी को कानों कान खबर नहीं होती। उसकी मौत के बाद हम लोगों को पता चला की उसने कैसे-कैसे लोगों की मदद की है। आकाश को जिंदा रखने के लिए उसकी निस्स्वार्थ मदद करने की भावना को पूरा करना मैंने अपना मकसद बना लिया और मेरे इसी मकसद से शुरुआत हुई आकाश माइंड वॉल फाउंडेशन की।

पति, दोस्त, रिश्तेदारों ने मुझे संभाला

बेटे को खोने के बाद मेरी जिंदगी वीरान हो गई। तब पति, दोस्त, रिश्तेदारों ने मुझे संभाला और आकाश का सपना पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया। उसके बाद मैंने वैशाली, गाजियाबाद के एक स्कूल में बच्चियों को पढ़ना शुरू किया। उस दौरान मुझे पता चला वैशाली में 8वीं कक्षा के बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए कोई सरकारी स्कूल नहीं है। जिसके कारण यहां रहने वाली गरीब बच्चियों को आगे की पढ़ाई करने का मौका नहीं मिल पता था। कोई घर-घर झाड़ू पोछे का काम करने लगती तो किसी की कच्ची उम्र में ही शादी हो जाती थी। इन बच्चियों को आगे की पढ़ाई के लिए हमने ओपन से 10वीं-12वीं का फॉर्म भरकर उन्हें परीक्षा की तैयारी कराई और परिणाम भी अच्छा प्राप्त किया।

आकाश के बाद ये बच्चियां ही बनी जीने का सहारा।
आकाश के बाद ये बच्चियां ही बनी जीने का सहारा।

गरीब की बेटियों को दी उड़ान

मैंने साल 2011 आकाश माइंड वॉल फाउंडेशन के जरिए उन बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी ली, जो बच्चियां पढ़ना चाहती हैं, लेकिन पैसों और सुविधाओं के अभाव के कारण अपनी पढ़ाई मुकम्मल नहीं कर पा रही थीं। उन बच्चियों को हमने अपने घर से पढ़ाना शुरू किया। जैसे-जैसे बच्चियों की संख्या बढ़ने लगी वैसे-वैसे जगह की भी तंगी होने लगी। बच्चों की बढ़ती संख्या के कारण हम लोगों ने किराये पर कमरा लेकर उनको पढ़ना शुरू किया। धीरे-धीरे जगह बढ़ाया। पहले तो मैं ये सब अकेले ही संभल सही थी, लेकिन रिटायरमेंट के बाद मेरे पति भी इस काम में मेरी मदद करते हैं।

आज हमारी बच्चियां अच्छी कंपनी में नौकरी भी कर रही हैं। कोई मास्टर कर रहा है। तो किसी की अच्छे परिवार में शादी हो गई है और ये सब मेरे बेटे आकाश के सपने और बच्चियों की शिक्षा की वजह से संभव हुआ है।

अनुपमा ने बताई गरीब बच्चियों को कामयाबी की राह।
अनुपमा ने बताई गरीब बच्चियों को कामयाबी की राह।

बस, भगवान से यही दुआ है कि उसकी आत्मा को शांति मिले। वो जहां भी हो खुश रहे। हर महिला की जिंदगी में कुछ न कुछ परेशानियां सामने आती हैं लेकिन उनसे घबराने और हार कर बैठ जाने से काम नहीं होगा। हमें समाज को कुछ देने के लिए उठना होगा।

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